सरल नहीं यह कार्य कठिन है हम पर लगी हैं सभी निगाहें । मीलों दूर है मंजिल अपनी नयी बनानी होंगी राहें ।। धूमिल नभ है मार्ग है दुस्तर बाधाएं होंगी यह तय है । सहनशीलता धैर्य बढ़ा लो विपदाएं आने का भय है ।। विगत सभी त्रुटियों से बचकर अहंकार ग्लानि को तजकर । नए वर्ष में नयी उमंगें नव संकल्पशक्ति को भरकर ।। साहसयुक्त बुद्धिकौशल से अथक परिश्रम पूर्ण लगन से । ध्येय प्राप्ति को बढे चलें हम अविचल निष्ठा पुलकित मन से ।। श्यामेंद्र सोलंकी
The metaphor in the second para for the harsh realities that pose obstacles in our life is really vivid. And the last para says how to overcome them...very inspiring.
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